श्री साईं के अनमोल वचन



चढ़े समाधि की सीढी़ पर।
पैर तले दु:ख की पीढी़पर ।।

त्याग शरीर चला जाँऊगा।
भक्त हेतु दौडा़ आँऊगा ।।

मन में रखना दृढ़ विश्वास।
करे समाधी पूरी आस ।।

मुझे सदा जीवित जानों।
अनुभव करो सत्य पहचानो ।।

मेरी शरण आ खाली जाये।
हो तो कोई मुझे बताये ।।

जैसा भाव रहा जिस जन का।
वैसा रुप हुआ मेरे मन का ।।

भार तुम्हारा मुझ पर होगा।
वचन मेरा झूठा होगा ।।

आ सहायता लो भरपूर।
जो माँगा वह नहीं है दूर ।।

मुझ में लीन वचन मन काया।
उसका ऋण न कभी चुकाया ।।

धन्य-धन्य वह भक्त अनन्य।
मेरी शरण तज जिसे न अन्य ।।




  • जिस तरह कीडा़ कपडो़ को कुतर डालता है, उसी तरह ईष्यॉ मनुष्य को।
  • क्रोध मूखॅता से शुरु होता है और पश्चाताप पर खत्म होता है।
  • नम्रता से देवता भी मनुष्य के वश में हो जाते हैं।
  • सम्पन्नता मित्रता बढा़ती है, विपदा उनकी परख करती है।
  • एकबार निकले बोल वापस नहीं आ सकते, इसलिए सोचकर बोलो।
  • तलवार की चोट उतनी तेज नहीं होती, जितनी जिव्हया की।
  • धीरज के सामने भयंकर संकट भी धुँए के बादलों की तरह उड़ जाते हैं।
  • मनुष्य के सदगुण : आशा, विश्वास और दान।
  • मनुष्य की महत्ता उसके कपडो़ से नहीं उसके आचरण से जानी जाती है।
  • दूसरो के हित के लिए अपने सुख का त्याग करना सच्ची सेवा है।
  • जब तुम किसी की सेवा करो तब उसकी त्रुटियों को देखकर उससे घृणा नहीं करनी चाहिए।
  • मनुष्य के रूप में परमात्मा सदा हमारे सामने है, उनकी सेवा करो।
  • अंधा वह नहीं जिसकी आँखे नहीं, अंधा वह है जो अपने दोषों को ढकता है।
  • चिंता से रुप, बल और ज्ञान का नाश होता है।
  • दूसरे को गिराने की कोशिश में तुम स्वयं गिर जाओगे।
  • प्रेम मनुष्य को अपनी ओर खींचने वाला चुम्बक है।






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