गुरु नानकवाणी







शबदे धरती शबदे आकाश।
शबदे शबद भया प्रकाश।।
सगली सृष्टि शबद के पाछे।
नानक शबद घटाघट आछे।।

एको सुमिरो नानका जल थल रह्यो समाय।
दूजा काहे सुमिरिये जम्मे ते मरि जाय।।



गुरु की मूरत मन में ध्याना।

गुरु के शबद मन्तर मन माना।।

गुरु के चरण हृदय लै धारो।

गुरु पारब्रह्म सदा नमस्कारो।।

गुरु की मूर्ति का मन में ध्यान करो और उनके शब्दों को मंत्रवत् समझो, जो सहज रूप से मन को नियंत्रित कर लेते है। अपने हृदय में गुरु चरणों को धारण करो। सदगुरु रुपी परंब्रह्म को सदैव नमस्कार करो।


मत कोई भरम भूलो संसारी।

गुरु बिन कोई न उतरसि पारी।।

भूले को गुरु मारग पाया।

अवर तियाग हरि भक्ति लाया।।

कोई संसार के बहकावे में आकर भ्रमित न हो। यह एक तथ्य है कि गुरु की कृपा के बिना कोई जन्म -मरण के बंधन से पार नहीं हो सकता। भूले भटके लोगों को गुरु रास्ता दिखाते हैं और उन्हें अन्य तुच्छ सांसारिक वस्तुओं से हटाकर प्रभु भक्ति के मार्ग में लगाते हैं।


जन्म मरण की त्रास मिटाई।

गुरु पूरे की बे -अन्त बड़ाई।।

जिन्ह पाया तिन्ह गुरु ते जाना।

गुरु कृपा ते मुगध मन माना।।

गुरु ने अपार कृपा कर हमारे मन से जन्म -मरण का भय मिटा दिया। सचमुच पूणँ गुरु की महिमा अनंत है ! इस संसार में जिसने भी ज्ञान पाया, गुरु से ही पाया। गुरु कृपा से प्राप्त युक्ति से अपने अंदर प्रवेश करके मन मुग्ध हो जाता है।

गुरु प्रसादि उधँ कमल बिगाशै।

अंधकार में भया प्रकाशै।।

गुरु करता गुरु करने योग:।

गुरु परमेश्वर है भी होग:।।

गुरु के कृपा प्रसाद से ही जीव को ऊध्वँ गति मिलती है, यानी सांसारिक बंधनों से ऊपर उठकर मनुष्य का हृदय कमल खिल उठता है और अज्ञान अंधकार दूर होकर अंदर प्रकाश हो जाता है।


कहे 'नानक' प्रभु एहो जनाई।

गुरु बिनु मुक्ति न पाइये भाई।।

गुरु ही जीव का कल्याण करनेवाले और सवँ समर्थ हैं। वे ही परंब्रह्म हैं और हमेशा रहेंगे। नानक साहब कहते हैं कि गुरु की कृपा से हमने यह ज्ञान प्राप्त किया है। हे भाई, गुरु के बिना सच्ची मुक्ति नहीं मिल सकती।




तू सुमिरण कर ले मेरे मना,
तेरी बीती उमर हरि नाम बिना।।

ऐ मन, तेरी सारी उम्र प्रभु के नाम स्मरण किये बिना योंही गुजरती जा रही है, अत: तू प्रभु का सुमिरण कर।

पंछी पंख बिन,
हस्ती दंत बिन,
नारी पुरुष बिना।
वेश्या पुत्र पिता बिन हीना,
तैसे प्राणी हरि नाम बिना।।

जैसे बिना पंख के पक्षी, बिना दांतों का हाथी, बिना पुरुष की नारी अधुरे रहते है और वेश्या का पुत्र पिता विहीन होने की वजह से समाज में तिरस्कृत होता रहता है, वैसे ही प्रभु नाम के बिना मनुष्य अधुरा है।

देह नैन बिन,
रैन चन्द्र बिन,
धरती मेघ बिना।
जैसे पंडित वेद बिहूना,
तैसे प्राणी हरि नाम बिना।।

जो मनुष्य भगवान का नाम सुमिरण नहीं करता, वह आंखों के बिना शरीर, चंद्रमा के बिना रात, बादलों के बिना धरती और वेद के बिना पंडित के समान बेकार होता है।

कूप नीर बिन,
धेनु छीर बिन,
मंदिर दीप बिना।
जैसे तरुवर फल बिन हीना,
तैसे प्राणी हरि नाम बिना।।

जो हालत जल से रहित कुएं की, बिना दूध गाय की, बिना दीपक के घर और बिना फल के पेड़ की होती है, वही हालत प्रभु का सुमिरण न करनेवाले मनुष्य की होती है।

काम क्रोध मद लोभ निवारो,
माया छाँडि़ सतगुरु सिर धारो।
'नानक' कहे सुनो भगवंता,
या जग में नहीं कोऊ अपना।।

इसलिए अपने मन से काम, क्रोध, मद, लोभ की भावनाओं का निवारण करो और माया को छोड़ सतगुरु की शरण में जाओ, उनको धारण करो। नानक साहब कहते है कि ऐ भक्तों, इस संसार में कोई अपना नहीं है, अत: प्रभु का सुमिरण करो।



काहे रे बन खोजन जाई।।

सवॅ निवासी सदा अलेपा,

तोरे ही संग समाई।।

हे भाई, प्रभु को ढूंढने के लिए घर द्वार छोड़कर तुम जंगल में क्यों जा रहे हो ? वह सवॅ व्यापक, हमेशा सबसे अलिप्त परमात्मा तो तुम्हारे ही अन्दर समाया हुआ है !

पुष्प मध्य ज्यों बास बसत है,
मुकुर माहिं जस छाई।
तैसे ही हरि बसै निरन्तर,
घट ही खोजो भाई।।

जिस प्रकार फूल के अंदर सुगंधि और दर्पण के अंदर परछाईं रहती है, उसी प्रकार वह परमात्मा भी तुम्हारे ही अन्दर निरंतर रहता है। अतः उसे अन्यत्र कहीं नहीं, बल्कि अपने घट के अंदर ही तलाश करो।

बाहर भीतर एकै जानो,
यह गुरु ज्ञान बताई।
जन 'नानक' बिन आपा चिन्हें,
मिटै न भरम की काई।।

वह परम सत्ता तुम्हारे बाहर और भीतर एक रस है, यह रहस्य हमें गुरु की कृपा से उनके ज्ञान द्वारा समझ में आया है। नानक साहब कहते हैं कि बिना अपने आप को जाने मन पर पड़ी भ्रम की काई कभी दूर नहीं होती।

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