डायबिटीज की कारगर औषधि




मधुशनी




     आजकल मधुमेह पीड़ितों की संख्या में बढ़ोतरी होती जा रही है एलोपैथी मे मधुमेह को डायबिटीज कहते हैं। पूरे विश्व में इसका आंकड़ा करोबो से ऊपर है। यह रोग सामान्य छोटे से छोटे बच्चे से लेकर जवान उम्र के तथा बुजुर्ग में बहुत तेजी से फेल रहा है। जिस प्रकार दीमक पूरे मकान को खोखला कर देती है इसी प्रकार शुगर चाहे वह मुत्र में हो या रक्त में पूरे शरीर को खोखला कर देती है। जिससे मनुष्य पूरी उम्र एलोपैथी दवाइयों ने इन्फेक्शन से अपनी उम्र गुजार देता है न तो वह पूरी तरह से खा पाता है तथा ना ही अपने जीवन का पूरा आनंद ले पाता है शुगर की वजह से आँखों में अंधापन तथा शारीरिक कमजोरी इस प्रकार आ जाती है कि मनुष्य का पूरा जीवन अंधकारमय हो जाता है।



     इस रोग के पीडित मनुष्य के शरीर में पेनक्रियाज नामक अवयव के कहलाए जानेवाले सेल कोषों के किसी कारणवश नष्ट हो जाने अथवा अपना कायॅक्रम बंद कर देने से इन्सुलीन पाचनरस का बनना बन्द हो जाता है। भोजन को पाचन क्रिया द्वारा कार्बोहाइड्रेट जब गुलुकोज बनकर रक्त में मिलता है तो इन्सुलीन की कमी से यह ग्लूकोज शक्ति एवं गर्मी में परिवर्तित न होकर रक्त में ही रह जाता है। इससे रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है एक हद से गुजर जाने पर गुदें द्वारा यही ग्लूकोज मूत्र मार्ग से निष्कासित होता रहता है। आग जलाने के लिए जिस प्रकार दियासलाई की जरूरत होती है उसी प्रकार चीनी युक्त भोजन की पाचन क्रिया को पूरा करने से इन्सुलीन की जरूरत होती है।



     मधुमेह हो जाने पर पाचन क्रिया बिगड़ जाती है, खाए प्रदाथोँ का रस परिपाक ठीक नहीं होता और इसी कारण यक्रत लीवर का काम भी ढीला पड जाता है। आधुनिक एलोपैथी डॉक्टर विशेषज्ञ इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि पेट में लीवर यक्रत और पेनक्रिया में पित्त और ऐसे पाचक रस निकलते हैं और खाद्यपदार्थो का परिपाक करने में मदद करते हैं और तब खाएं पदार्थो में रहने वाली चीनी को यह शरीर बदाॅश्त नहीं कर पाते। लीवर और पेनक्रियाज की दुबॅलता के कारण चीनी पेशाब के साथ निकल जाती है और खून में भी मिल जाती है जिससे मनुष्य के खुन में चीनी की मात्रा बढ़ जाती है। जिसे डायबिटीज कहते हैं।

     मुख्य लक्षण
     मधुमेह में अत्यधिक एवं बार बार प्यास लगना, अत्यधिक मूत्र लगना, शारीरिक शक्ति की कमी होना, अधिक समय बीतने पर और भी उपद्रव सामने आते हैं जैसे शरीर में झनझनाहत, सूनापन, सुई चुभोने जैसी पीड़ा, स्पशॅ ज्ञान की कमी या शून्यता, कई प्रकार के ह्दय रोग, रक्तचाप बढ़ जाने पर घबराहट, धडकर श्वास बुला आदि आँखों की ज्योति का मंदिर हो जाना, एकाएक ज्योतिहीन हो जाना, लकवा मार जाना, संज्ञाहीन हो जाना यह मधुमेह के मुख्य लक्षण हैं।

     एलोपैथिक पद्धति से जानवरों में पेनक्रियाज से इन्सुलीन नामक पाचन रस निकालकर उसकी दवाई बनाई जाती है जिसको सुई द्वारा या गोलियों द्वारा शरीर में पहुंचाने से अतिरिक्त चीनी नष्ट हो जाती है। इसी प्रकार प्राकृतिक एवं शुध्द्व जड़ी बूटियों द्वारा मधुशनी का निमाॅण किया जिसके सेवन कर शरीर में स्वत: ही इन्सुलीन पाचनरस का पुन: निमाॅण हो जाता है तथा भोजन की पाचन क्रिया द्वारा काबाँहाडेंट्स ग्लूकोज में बनकर रक्त में मिलना बंद हो जाता है तथा शरीर में जितनी मात्रा में इन्सुलीन की आवश्यकता होती है उसकी पूर्ति मधुशनी के सेवन से स्वत: ही होने लगती तथा शुगर से होने वाले उपद्रव में इंसान को आराम मिल जाता है तथा शरीर में नई क्रांति का संचार होता है।

     मधुशनी का नियमित सेवन से रक्त में आने वाली शुगर नियंत्रित हो जाती है तथा कुछ दिन लगातार सेवा करने से मधुमेह से राहत मिलती है।


   उपयोग करने का तरीका    
मधुशनी का एक चाय वाला पूरा चम्मच सवेरे खाली पेट ताजे पानी में ले उसके उपरांत नाश्ता करे। इसी प्रकार दोपहर को खाना खाने से पूर्व एक चाय वाला चम्मच ताजे पानी में ले फिर भोजन कर ले और इसी प्रकार रात को खाना खाने से पूर्व।




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